Maladaptive Daydreaming: जब कल्पनाएं हकीकत से ज़्यादा हावी हो जाएं
कभी आपने गौर किया है कि हम सब दिन में सपने देखते हैं — कभी ऑफिस में बैठे-बैठे, तो कभी बस में सफर करते हुए। पर क्या हो जब ये सपने हद से ज़्यादा हावी होने लगें? जब आप अपने बनाए हुए काल्पनिक किरदारों के साथ ज़्यादा जुड़ जाएं, बजाय अपने दोस्तों या परिवार के?
यही है Maladaptive Daydreaming — एक ऐसी मानसिक स्थिति जहां कल्पनाएं इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि असली ज़िंदगी पीछे छूट जाती है।
क्या Maladaptive Daydreaming कोई बीमारी है?
सीधे शब्दों में कहें, तो ये बीमारी नहीं है, लेकिन एक मानसिक अवस्था है, जो धीरे-धीरे आपकी सोच, दिनचर्या और रिश्तों को प्रभावित कर सकती है। Clinical psychologist डॉ. तरुण वर्मा कहते हैं कि Maladaptive Daydreaming कोई नयी चीज़ नहीं है, पर आजकल लोग इसके बारे में ज्यादा खुलकर बात कर रहे हैं। कई लोग इसे पहचान ही नहीं पाते, क्योंकि ये आम दिन में सपने देखने जैसा लगता है — लेकिन फर्क बहुत बड़ा होता है।
कैसे फर्क समझें?
सोचिए, कोई इंसान सुबह उठते ही अपने काल्पनिक किरदारों के बारे में सोचने लगे — उनके डायलॉग, इमोशंस, सीन्स — जैसे एक फिल्म उसके दिमाग में चल रही हो। फिर खाना खाते वक्त, चलते-फिरते, या यहां तक कि काम के दौरान भी वो इन्हीं फैंटेसीज़ में खोया रहता है।
कभी-कभी लोग खुद से बात करते हैं, म्यूजिक लगाकर किसी काल्पनिक दुनिया में चले जाते हैं, और ये आदत दिन का 4-5 घंटे भी खा जाती है।
अब ये कोई आम बात तो नहीं?
Maladaptive Daydreaming के लक्षण क्या हैं?
अगर आपको या आपके किसी करीबी को ये चीज़ें महसूस हों, तो सतर्क हो जाना चाहिए:
- दिन के बहुत बड़े हिस्से में कल्पनाओं में खोए रहना
- अकेले में हंसना, बात करना, या हाथ हिलाना जैसे वो किसी सीन में एक्टिंग कर रहा हो
- म्यूजिक लगाते ही तुरंत किसी फैंटेसी में चले जाना
- पढ़ाई, काम या रिश्तों में दिलचस्पी कम हो जाना
- नींद से पहले भी लंबी-लंबी कहानियां सोचते रहना
क्यों होता है ऐसा?
हर किसी का अनुभव अलग होता है, लेकिन कुछ सामान्य कारण हैं:
- बचपन में emotional neglect या abuse
- अकेलापन या social isolation
- डिप्रेशन या anxiety
- Trauma से बचने की कोशिश (दिमाग खुद को बचाने के लिए ऐसी दुनिया बना लेता है जहां सब कुछ उसके हिसाब से होता है)
- बार-बार fantasy देखने की आदत, जो धीरे-धीरे addiction बन जाती है
क्या इसका इलाज है?
हां, बिल्कुल है। और सबसे पहली बात — इससे घबराने की जरूरत नहीं है।
ये ठीक वैसी ही मानसिक स्थिति है जैसे anxiety या insomnia, जिसका इलाज संभव है। आपको बस ये पहचानना है कि ये फैंटेसीज़ अब आपके कंट्रोल से बाहर जा रही हैं।
उपचार के तरीके:
- Cognitive Behavioral Therapy (CBT):
- इससे आप अपने विचारों और व्यवहारों को समझकर उन्हें बदलना सीखते हैं।
- Mindfulness और Meditation:
- वर्तमान में रहना सीखिए। मन को बार-बार कल्पनाओं में भागने से रोकना आसान नहीं, पर धीरे-धीरे संभव है।
- Trigger पहचानना:
- कौन सी चीज़ें आपको फैंटेसी में ले जाती हैं? अकेलापन? म्यूजिक? कुछ खास ख्याल? उन्हें समझिए और बदलाव लाइए।
- रूटीन में बदलाव:
- समय-समय पर खुद को व्यस्त रखना, जैसे कोई नया शौक अपनाना, फिजिकल एक्टिविटी करना या लोगों से बातचीत बढ़ाना।
क्या Maladaptive Daydreaming हमेशा नुकसानदेह है?
हर बार नहीं। अगर आप दिन में कुछ देर अपनी कल्पनाओं में खो जाते हैं और वो आपके काम या रिश्तों पर असर नहीं डाल रही, तो शायद वो नुकसानदेह नहीं है।
पर जब आप असल ज़िंदगी की जिम्मेदारियों से कटने लगें, और आपकी कल्पनाएं आपका रियलिटी से कनेक्शन तोड़ने लगें — तब ये वाकई चिंता की बात है।
मैं खुद भी कई बार फैंटेसी में खो जाता हूं। कभी लगता है, एक नई दुनिया बना लूं — जहां सबकुछ मेरी मर्ज़ी से चले। पर फिर सोचता हूं — असली ज़िंदगी में जितना मुश्किल है, उतना ही असली भी है।
कल्पनाएं हमारी ताकत हो सकती हैं, अगर हम उन्हें संभालना सीख जाएं।
निष्कर्ष — क्या करें?
अगर आपको लगता है कि आप दिन के कई घंटे अपनी सोच की फिल्म में बर्बाद कर रहे हैं — और वो भी बार-बार — तो खुद को टालिए मत।
बात कीजिए किसी प्रोफेशनल से।
और सबसे जरूरी — खुद को दोषी मत मानिए। ये कमजोरी नहीं है। ये बस एक इशारा है कि आपका दिमाग कुछ कह रहा है — बस आपको उसे सही से सुनना और समझना है।
आपका क्या अनुभव है?
क्या आपको भी कभी लगा है कि आप दिन में ज़रूरत से ज़्यादा सोचते हैं? कभी-कभी खुद से बात करते हैं? नीचे कमेंट में शेयर कीजिए — शायद आपकी कहानी किसी और को खुद को समझने में मदद कर दे।
1 Comments
Informative article birather ✨🙌
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