जब आंखों पर बांध दी पट्टी और समुदायिक राजनीति में खोए युवा मन


🎭 जब आंखों पर बांध दी पट्टी, समुदायिक राजनीति में खोए युवा मन

📖 कहानी का आधार: यह लेख पूर्णतः काल्पनिक पात्रों और घटनाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य समाज में फैली अंधभक्ति की प्रवृत्ति को समझाना है, न कि किसी व्यक्ति या समुदाय को निशाना बनाना।इस लेख में विभिन्न रंग 'जातियों' को दर्शाते हैं |
कल्पना करिए एक ऐसी दुनिया जहां लोग रंगों के आधार पर बंटे हों। नीले रंग वाले, पीले रंग वाले, हरे रंग वाले। हर रंग का अपना नेता, अपना गुरु, अपना महान व्यक्तित्व। अमिताभ और विकेश (काल्पनिक नाम, जो अपने नेता का बहुत बड़ा अन्धभक्त है क्योंकि वो उसी समाज से आता है) भी इसी रंगीन दुनिया के हिस्से हैं। वे "भूरे रंग की टोली" से आते हैं और अपने रंग के एक नेता को मानते हैं जिसे हम "भूरा बादशाह" कहेंगे। यह भूरा बादशाह कभी अच्छा राजनेता था, लेकिन अब उसकी करतूतें सामने आ चुकी हैं। फिर भी ये दोनों युवा उसे अपना आदर्श मानते हैं।

🎨 रंगों की राजनीति (एक काल्पनिक समाज)

हमारे काल्पनिक देश ‘रंगभूमि’ में लोग जन्म से मिले ‘रंग’ के आधार पर अलग‑अलग समूहों में बँटे हैं , यानी यहाँ ‘रंग’ वास्तव में जातीय पहचान का रूपक है। आज के माहौल में भी यही होता दिखता है , भूरा नेता उस क्षेत्र में अपने समुदाय की अधिक संख्या देखकर ‘अपनापन’ का नारा लगाता है ‘मेरे लोग, मेरा रंग’- और उसी पहचान के नाम पर समर्थन समेटता है। वह बार‑बार भरोसा दिलाता है कि ‘हमारे रंग वालों’ को नौकरी, मान‑सम्मान और मंत्री पद मिलेंगे; इसी लालच‑आश्वासन से वोट बटोरकर वह मुख्यमंत्री बन जाता है। शुरुआत में सब कुछ ठीक‑ठाक लगता है, पर धीरे‑धीरे असल चेहरा दिखता है , भ्रष्टाचार और सौदेबाज़ी। ‘रंगीन चारा घोटाला’ जैसे कांडों में सार्वजनिक धन लूटा जाता है, ‘रंगीन रेल घोटाला’ के तहत भर्तियों में पहचान को टिकट बना दिया जाता है। फिर भी अपने रंग की भीड़ उसे मसीहा मानती रहती है, क्योंकि पहचान का नशा तर्क, सबूत और परिणाम--तीनों पर भारी पड़ जाता है।

🧠 कैसे होती है मानसिक गुलामी - अमिताभ और विकेश का केस स्टडी

🎪 सर्कस का जादूगर - भूरा बादशाह

भूरा बादशाह एक कुशल जादूगर की तरह था | वह अपने समुदाय के लोगों को लगातार ‘मेरे लोग, मेरे रंग वाले’ कहकर अपना मानता, उनकी पीड़ा को अपना दर्द बताता और इसी जुड़ाव की डोर से उन्हें बांध लेता, सभाओं में कहता ‘मैं तुम्हारा प्रतिनिधि हूं, तुम्हारे लिए खड़ा हूं, तुम्हारे लिए लड़ूंगा , और भीड़ तालियां बजा देती; अमिताभ और विकेश जैसे हजारों युवा उसी के जादू में फंसते चले गए। 
वह एक चतुर रणनीति अपनाता था। जब भी कोई उस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाता, वह तुरंत कह देता - "यह सफेद रंग वालों की चाल है। वे नहीं चाहते कि भूरे रंग के लोग आगे बढ़ें।" बस इतना कहना काफी था। अमिताभ और विकेश तुरंत उसका बचाव करने लग जाते थे। तर्क, सबूत, न्यायालय के फैसले - सब कुछ "साजिश" हो जाता था।

🔮 भावनाओं का खेल , तर्क की हत्या

अमिताभ के घर में एक दिलचस्प घटना हुई। उसके पिता ने समझाया ‘बेटा, भूरा बादशाह तो भ्रष्ट निकला। अब हमें किसी और को वोट देना चाहिए।’ लेकिन अमिताभ ने जवाब दिया ‘पापा, आप भूल गए क्या? वह तो बार‑बार हमें ‘मेरे लोग, मेरे रंग वाले’ कहकर अपना बताता है , वही हमारा सच्चा रक्षक है।’ यह था भावनाओं का खेल—जहां तर्क की कोई जगह नहीं थी। 
विकेश का केस और भी दिलचस्प है। जब भूरा बादशाह जेल गया, तो विकेश ने उपवास रखा। वह कहता था ‘हमारे नेता को झूठे मामले में फंसाया गया है।’ जब अदालत ने सबूतों के साथ भूरा बादशाह को दोषी ठहराया, तो विकेश का कहना था ‘न्याय व्यवस्था पर भी दबाव है, सच सामने नहीं आने दिया जा रहा।’ यानी उसकी नज़र में पूरी प्रक्रिया ही किसी साजिश का हिस्सा थी।

🧠 अंधभक्ति के मनोवैज्ञानिक कारण:

  • समूहीय पहचान: "मैं भूरे रंग का हूं, इसलिए भूरा बादशाह मेरा है"
  • ऐतिहासिक शिकायत: "हमारे साथ अन्याय हुआ था"
  • डर की राजनीति: "अगर भूरा नेता नहीं रहा तो हमारे रंग वाले को कुचला जाएगा ,दबाया जाएगा"
  • गलती न मानना: "हमारा चुनाव गलत नहीं हो सकता"
  • भावनात्मक लगाव: "वह हमारे जैसा है, हमें समझता है"

🎭 दूसरे रंगों की कहानी

🔴 लाल रंग की टोली - अलग कहानी, वही समस्या

रंगभूमि में "लाल रंग वाले" भी हैं। उनका नेता है "लाल सुल्तान"। यह भी वही खेल खेलता है। लाल रंग के युवा राकेश और मनोज भी अमिताभ-विकेश की तरह ही अंधे हैं। जब लाल सुल्तान पर "लाल स्याही घोटाला" का आरोप लगा, तो राकेश ने कहा - "यह भूरे और सफेद रंग वालों की मिली भगत है।" वही भावना, वही तर्कहीनता, वही अंधापन।

🟡 पीले रंग का जादू - धर्म और राजनीति 

पीले रंग वालों का नेता "पीला पंडित" है। वह धर्म का सहारा लेता है। कहता है - "पीला रंग पवित्र है, बाकी सब अशुद्ध।" उसके समर्थक सुनील और आदित्य मंदिर-मस्जिद के नाम पर लड़ते रहते हैं। जब पीला पंडित के "पीले मंदिर घोटाला" की खबर आई, तो सुनील ने कहा - "यह धर्म पर हमला है।" यहां भी वही पैटर्न - अंधभक्ति, तर्कहीनता, और सच से इनकार।
रंग समूह नेता नारा भ्रष्टाचार भक्तों का बहाना
भूरे रंग वाले भूरा बादशाह "भूरा है तो हमारा है" चारा घोटाला "सफेदों की साजिश"
लाल रंग वाले लाल सुल्तान "लाल है लाजवाब" स्याही घोटाला "भूरों की जलन"
पीले रंग वाले पीला पंडित "पीला है पवित्र" मंदिर घोटाला "धर्म पर हमला"
हरे रंग वाले हरा हाकिम "हरा मतलब हरियाली" पेड़ घोटाला "पर्यावरण शत्रुओं की चाल"

🎯 युवाओं का भटकाव - कैसे फंसते हैं मासूम दिमाग

📱 डिजिटल जाल - नई पीढ़ी की समस्या

अमिताभ और विकेश की उम्र के युवा सबसे ज्यादा खतरे में हैं। वे सोशल मीडिया पर रहते हैं, जहां हर रंग के अपने-अपने ग्रुप हैं। "भूरे रंग की शान" ग्रुप में सिर्फ भूरा बादशाह की तारीफ होती है। कोई सच बोले तो तुरंत निकाल दिया जाता है। जहां सिर्फ एक ही आवाज सुनाई देती है।
विकेश का व्हाट्सऐप स्टेटस देखिए - "भूरा बादशाह = भगवान"। यह सिर्फ राजनीतिक समर्थन नहीं, बल्कि धार्मिक श्रद्धा बन गई है। जब भूरा बादशाह का बर्थडे आता है, तो विकेश उपवास रखता है। जब वह जेल जाता है, तो विकेश रोता है। यह अंधभक्ति है, राजनीतिक समझ नहीं।

🎓 युवाओं पर रंगीन राजनीति का प्रभाव:

  • तर्कशक्ति का बिलकुल न होना: सवाल करना छोड़ देते हैं
  • भविष्य की चिंता न करना: नेता पर निर्भरता
  • विभाजनकारी मानसिकता: दूसरे रंग से नफरत
  • भ्रष्टाचार का सामान्यीकरण: गलत को सही मानना
  • सामाजिक एकता का नुकसान: रंग के आधार पर बंटना

⚖️ सही नेता कैसे चुनें !

🔍रंग नहीं, गुण देखिए

📋 आदर्श नेता की पहचान:

  1. ईमानदारी: क्या उस पर भ्रष्टाचार का कोई मामला है?
  2. योग्यता: क्या उसके पास काम करने की क्षमता है?
  3. विकासकार्य: उसने पहले क्या अच्छा काम किया है?
  4. एकता: क्या वह सभी जाती और धर्म को साथ लेकर चलता है?
  5. भविष्य की दृष्टि: उसके पास आने वाले कल की कोई योजना है?
  6. जवाबदेहता: क्या वह अपनी गलतियों को मानता है?

रंगमुक्त नेता की कहानी 

रंगभूमि में एक नेता आया जिसका नाम था "इंद्रधनुष नायक"। वह किसी खास रंग का नहीं था, बल्कि सभी रंगों को मिलाकर बना था। उसने कहा - "मैं किसी एक रंग का नहीं, सबका हूं।" शुरुआत में लोगों ने उसे नहीं माना। भूरे रंग वालों ने कहा - "यह हमारा नहीं है।" पीले रंग वालों ने कहा - "यह अशुद्ध है।" लेकिन इंद्रधनुष नायक ने काम करके दिखाया।
उसने सबके लिए स्कूल बनवाए, सबको नौकरी दी, सबका इलाज करवाया। योग्यता के आधार पर मंत्री बनाए। रंग देखकर नहीं। पांच साल बाद रंगभूमि बदल गया था। अब लोग कहते थे - "रंग छोटी बात है, काम बड़ी बात है।" लेकिन अफसोस, अमिताभ और विकेश जैसे लोग आज भी अपने भूरे बादशाह के सपने देख रहे हैं।

🎭 अमिताभ और विकेश का व्यवहार विश्लेषण

🔄 दैनिक जीवन में अंधभक्ति

अमिताभ की दिनचर्या देखिए तो समझ आ जाएगा कि अंधभक्ति कैसे व्यक्तित्व को गुलाम बना देती है। सुबह उठते ही वह भूरा बादशाह की तस्वीर को नमस्कार करता है। फिर फोन में "अपने ही नेता की झूठी तारीफें" सुनता है - जहां सिर्फ भूरे रंग के नेताओं की तारीफ होती है। नाश्ते के समय परिवार से भूरा बादशाह की महानता के किस्से सुनाता है। दिनभर व्हाट्सऐप पर भूरा बादशाह के वीडियो फॉरवर्ड करता रहता है

विकेश का हाल और भी बुरा है। जब उसके नेता की सचाई उसके सामने दिखायी जाती है तो वो वहां से भाग खड़ा होता है। उसका कहना है - "मैं अपने रंग पर गर्व करता हूं।" जब कोई दूसरे रंग का व्यक्ति उससे बात करता है, तो वह पहले उसका रंग देखता है।"

🗣️ बहस में तर्कहीनता

एक दिन अमिताभ और उसके मित्र आकाश (जो नीले रंग का था) के बीच बहस हुई। आकाश ने कहा - "भूरा बादशाह तो भ्रष्ट था, कोर्ट ने भी मान लिया है।" अमिताभ का जवाब था - "कोर्ट भी सफेद रंग वालों के कब्जे में है।" आकाश ने सबूत दिखाए - "देखो, ये तो कागजात हैं।" अमिताभ बोला - "यह सब फर्जी है।" आकाश ने न्यूज दिखाई - "इसमें तो साफ लिखा है।" अमिताभ का जवाब - "मीडिया तो बिकी हुई है।"
यह था तर्कहीनता का खेल। अमिताभ के पास हर सबूत का एक जवाब था - "साजिश"। विकेश भी यही करता है। जब कोई भूरा बादशाह की आलोचना करता है, तो वह कहता है - "तुम हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हो।" यानी तर्क नहीं, सिर्फ भावना। सच नहीं, सिर्फ विश्वास।
स्थिति सामान्य व्यक्ति की प्रतिक्रिया अमिताभ/विकेश की प्रतिक्रिया
नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप "देखते हैं, जांच हो जाने दो" "यह साजिश है"
कोर्ट का फैसला "न्यायालय ने फैसला दे दिया" "न्यायाधीश बिके हुए हैं"
मीडिया रिपोर्ट "खबर पढ़कर समझते हैं" "मीडिया बिकी हुई है"
आलोचना "सुनते हैं, समझते हैं" "भावनाओं को ठेस"

🔮 भविष्य की चुनौतियां और समाधान

  1. शिक्षा सुधार: स्कूलों में तर्कशील सोच पर जोर
  2. मीडिया नियंत्रण: रंगीय चैनलों पर रोक
  3. युवा जागरूकता: कैंपसों में चर्चा कार्यक्रम
  4. नेता मूल्यांकन: कामों के आधार पर रैंकिंग
  5. सामुदायिक एकता: रंग-मुक्त त्योहार और कार्यक्रम

🎯 रंगीन राजनीति से मुक्ति का समय

अमिताभ और विकेश की कहानी एक दर्पण है जो हमारे समाज की सच्चाई दिखाती है। ये दोनों काल्पनिक पात्र हैं लेकिन इनकी समस्या वास्तविक है। हमारे चारों ओर ऐसे लाखों युवा हैं जो अपनी पहचान को राजनीतिक हथियार बना चुके हैं। वे तर्क को छोड़कर भावना के पीछे चल रहे हैं। 
रंगभूमि(समाज) की कहानी सिखाती है कि जब तक हम रंग(जात पात धर्म) देखकर नेता चुनते रहेंगे, तब तक भूरा बादशाह(नेता), लाल सुल्तान(नेता), और पीला पंडित(नेता) जैसे लोग हमारा फायदा उठाते रहेंगे। हमें समझना होगा कि राजनीति में रंग नहीं, गुण मायने रखता है। भ्रष्टाचार का कोई रंग नहीं होता। ईमानदारी का भी कोई रंग नहीं होता। 
सबसे दुखदाई बात यह है कि अमिताभ और विकेश जैसे युवा अपना भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। वे अपनी ऊर्जा, अपना समय, अपनी मेधा - सब कुछ रंगीन राजनीति में गंवा रहे हैं। जबकि उन्हें अपने कैरियर पर, अपने सपनों पर, अपने देश के विकास पर ध्यान देना चाहिए। 
इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि हर व्यक्ति के पास चुनने का अधिकार है। अमिताभ और विकेश आज भी चुन सकते हैं कि वे भूरा बादशाह(जातियय नेता) के गुलाम बने रहना चाहते हैं या फिर अपनी आंखों की पट्टी हटाकर सच को देखना चाहते हैं। यह फैसला सिर्फ उनका है, हमारा है, आपका है। 
रंगभूमि अभी भी बदल सकता है। जरूरत है तो बस इतनी कि हम रंग की बजाय काम देखना शुरू करें। नेता की उसकी नीयत देखें। उसका रंग नहीं, उसका चरित्र देखें। तभी हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकेंगे जहां अमिताभ और विकेश जैसे युवा अंधभक्ति के बजाय तर्कशील सोच अपनाएंगे।

कहानी का आधार: यह लेख पूर्णतः काल्पनिक पात्रों और घटनाओं पर आधारित है। रंगभूमि, भूरा बादशाह, और सभी नाम कल्पना की उड़ान हैं।

उद्देश्य: इस रूपक कहानी का मकसद जातिवादी राजनीति की हानियों को समझाना है, किसी को अपमानित करना नहीं।

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