नीतीश कुमार का पावर प्ले: फ्री बिजली योजना की हकीकत


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 17 जुलाई 2025 को एक बड़ी घोषणा करते हुए राज्य के सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का ऐलान किया है। यह योजना 1 अगस्त 2025 से लागू होगी और राज्य के 1.67 करोड़ परिवारों को इसका फायदा मिलेगा। हालांकि यह घोषणा पहली नजर में जनकल्याणकारी लगती है, लेकिन गहराई से देखें तो इसमें कई समस्याएं छुपी हुई हैं। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले की गई यह घोषणा न केवल राज्य की वित्तीय स्थिति पर भारी बोझ डालेगी, बल्कि बिजली वितरण प्रणाली की मौजूदा समस्याओं को और भी गहरा बना सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना चुनावी फायदे के लिए एक जल्दबाजी में लिया गया फैसला है, जिसके दूरगामी परिणाम राज्य और जनता दोनों के लिए नकारात्मक हो सकते हैं।

राजनीतिक पैंतरेबाजी और चुनावी दबाव

नीतीश कुमार की यह घोषणा दरअसल विपक्षी नेता तेजस्वी यादव के 200 यूनिट मुफ्त बिजली के वादे के बाद आई है। तेजस्वी यादव ने सितंबर 2024 में ही इस मुद्दे को उठाया था और लगातार सरकार पर दबाव बनाया था। दिलचस्प बात यह है कि नीतीश कुमार ने फरवरी 2024 में विधानसभा में साफ तौर पर कहा था कि वे मुफ्त बिजली नहीं दे सकते। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने इस बदलाव को लेकर कहा है, "नीतीश सरकार एक नकलची सरकार है; यह तेजस्वी यादव की योजनाओं को चुराती है।" विपक्ष का आरोप है कि यह पूरी तरह से चुनावी रणनीति है और सरकार के पास अपना कोई दृष्टिकोण नहीं है।



आर्थिक बोझ और वित्तीय चुनौती

इस योजना की सबसे बड़ी समस्या इसकी भारी लागत है। बिहार सरकार पर इस योजना का अतिरिक्त बोझ 1565 करोड़ 62 लाख 50 हजार रुपये का पड़ेगा। यह राशि राज्य के पहले से ही तनावग्रस्त वित्त पर और दबाव डालेगी। उप मुख्यमंत्री समरत चौधरी के अनुसार, इससे राज्य का वार्षिक बिजली सब्सिडी बोझ 16,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 19,000 करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा। CAG की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार का राजकोषीय घाटा 2022-23 में 5.97% तक पहुंच गया है, जो 4% की निर्धारित सीमा से काफी अधिक है। राज्य का कुल कर्ज GSDP का 39.03% है, जो 40.80% की सीमा के करीब है। इस स्थिति में अतिरिक्त 1565 करोड़ का बोझ राज्य की वित्तीय स्थिति को और भी खराब बना सकता है।

बिजली वितरण में मौजूदा समस्याएं

बिहार में बिजली वितरण की स्थिति पहले से ही चुनौतीपूर्ण है। राज्य में नियमित रूप से पावर कट्स होते हैं और लोगों को कई घंटों तक बिजली का इंतजार करना पड़ता है। Reddit पर उपभोक्ताओं की शिकायतों के अनुसार, "पहले कम कटौती होती थी, लेकिन इस घोषणा के बाद से पावर कट्स बहुत आम हो गई हैं, यहां तक कि रात में भी।" बिहार के ऊर्जा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, राज्य को दैनिक 6,500 मेगावाट बिजली की जरूरत है, लेकिन केवल 4,700 मेगावाट ही मिल पाती है। केंद्र सरकार 3,200 मेगावाट देती है और बाकी 1,500 मेगावाट खुले बाजार से 20 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीदनी पड़ती है।

चोरी और टेक्निकल लॉसेज की समस्या

बिहार में बिजली चोरी एक गंभीर समस्या है। राज्य की पावर कंपनियों ने बिजली चोरी के खिलाफ अभियान चलाकर 4000 FIR दर्ज की हैं। पावर कंपनियों को प्रतिदिन 35% तक का नुकसान बिजली चोरी के कारण उठाना पड़ता है। एक तिहाई से अधिक उपभोक्ताओं के पास मीटर नहीं हैं या उनके मीटर खराब हैं। CAG रिपोर्ट के अनुसार, 35 लाख उपभोक्ताओं में से 10.24 लाख के पास मीटर नहीं है और 1.28 लाख के पास खराब मीटर हैं।

राज्य सरकार की दुविधा

विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार के पास इस अतिरिक्त बोझ को संभालने के लिए सीमित विकल्प हैं। राजनीतिक विश्लेषक कन्हैया भेलारी के अनुसार, सरकार को इस बोझ को पूरा करने के लिए बैंक से लोन लेना पड़ सकता है।

एक अन्य विशेषज्ञ संतोष यादव का कहना है कि सरकार को अन्य करों में वृद्धि करनी पड़ेगी - "अब जमीन पर टैक्स बढ़ाएगी, रजिस्ट्रेशन पर टैक्स बढ़ाएगी, इंश्योरेंस पर टैक्स काटेगी।" उन्होंने सुझाव दिया कि शराबबंदी हटाकर 20 हजार करोड़ रुपये की आमदनी से इस बोझ को उठाया जा सकता है।

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री की चेतावनी

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने मुफ्त बिजली देने वाले राज्यों को कर्ज के जाल में फंसने की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा, "अगर कोई राज्य किसी वर्ग के लोगों को मुफ्त बिजली देना चाहता है, तो वे ऐसा कर सकते हैं, लेकिन आपको इसके लिए भुगतान करना होगा।" उन्होंने पंजाब का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे AAP सरकार ने दो साल में 47,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है।

समाज पर प्रभाव

यह योजना न केवल वित्तीय चुनौती है, बल्कि इसके सामाजिक प्रभाव भी चिंताजनक हैं। मुफ्त बिजली के नाम पर लोग अधिक कनेक्शन लगवा रहे हैं और 1000 यूनिट तक की बिजली का मुफ्त इस्तेमाल कर रहे हैं, जो एक तरह से बिजली चोरी को बढ़ावा दे रहा है। UP के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने व्यंग्य करते हुए कहा, "ना बिजली आएगी, ना बिल आएगा" - यह इस बात का संकेत है कि बिहार में बिजली की आपूर्ति की समस्या के कारण मुफ्त बिजली का वादा खोखला हो सकता है।

विकास कार्यों पर प्रभाव

CAG की रिपोर्ट के अनुसार, बिजली सब्सिडी राज्य के कुल सब्सिडी का 82.43% हिस्सा है। यह पहले से ही राज्य के पूंजीगत व्यय का आधा हिस्सा खा रही है। अतिरिक्त बोझ के कारण सड़क, अस्पताल, स्कूल जैसे विकास कार्यों के लिए पैसा कम हो जाएगा। India Today के विश्लेषण के अनुसार, बिहार जैसे कमजोर कर आधार और सीमित उधारी क्षमता वाले राज्य के लिए ऐसी गारंटी का बोझ वहन करना मुश्किल है।

निष्कर्ष: चुनौतियों का सामना

नीतीश कुमार की फ्री बिजली योजना निस्संदेह एक महत्वाकांक्षी घोषणा है, लेकिन इसमें गंभीर समस्याएं छुपी हुई हैं। राज्य की वित्तीय स्थिति, बिजली वितरण की मौजूदा चुनौतियां, और दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव इस योजना की व्यवहारिकता पर सवाल खड़े करते हैं। हालांकि यह योजना 1.67 करोड़ परिवारों को राहत दे सकती है, लेकिन इसके लिए आने वाली पीढ़ियों को कर्ज का बोझ उठाना पड़ सकता है। सच्चाई यह है कि चुनावी फायदे के लिए लिए गए ऐसे फैसले अक्सर राज्य की दीर्घकालिक वित्तीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं।

जरूरत है एक संतुलित दृष्टिकोण की, जो जनता की जरूरतों को पूरा करे और साथ ही राज्य की वित्तीय स्थिति को भी ध्यान में रखे। अन्यथा, यह 'फ्री बिजली प्लान' वास्तव में एक बड़ी समस्या बन सकता है।

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